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पुरातन काव्य-साहित्य राहुलजीका उपर्युक्त कथन कहॉतक यथार्थ है यह तो पाठकोपर ही छोड़ा जाता है, पर इतना सुनिश्चित है कि रामचरितमानसके अनेक स्थल खयभूकी पउमचरिउ-रामायणसे अत्यधिक प्रभावित हैं तथा स्वयंभूकी शैलीका तुलसीदासने अनेक स्थलोंपर अनुकरण किया है। जिस प्रकार स्वयभूने पउमचरिउके आरम्भमें अपनी लघुता प्रदर्शित की है उसी प्रकार तुल्सीने मी । स्वयभूका आत्मनिवेदन तुलसीके आत्मनिवेदनसे भावसाम्य रखता है, अतः यदि यह माना जाय कि तुलसीने स्वयभूका अनुकरण किया है तो इसमे आश्चर्य ही क्या है ? उदाहरणके लिए कुछ अश पउमचरिउके नीचे उद्धृत किये जाते हैं :बुह-यण सर्यभु पइँ विण्णवइ । महु सरिसउ अण्ण गाहि कुकइ ॥ वायरशु कयाह ण नाणियउ । उ वित्ति-सुत्त धक्खाणियउ। णा णिसुणित पंच महाय क्ब्बु । णउ भरहु ण लक्खणु छंदु सध्छु । णउ बुझिउ पिंगल-पच्छारु । णड भामह-दंडीय लंकार ॥ वे वे साय तो वि णउ परिहरमि । परि स्यडा वृत्तु कच्छ करमि ॥ सामाणमास छुड मा बिहडउ । छुड आगम-जुचि किंपि घडर। छुड हॉति सु हासिय-वयणाई । गामेल्ल भास परिहरणाई ॥ एहु सजण लोयहु किउ विणउ । जं अबुहु परिसिठ अप्पण' ॥ जं एवंवि रूसाइ कोवि खल्लु । हो हत्युस्थस्लिड लेउ छलु ॥
पिसुणे किं भन्भत्थिएण, जसु कोवि ण रुथइ। किं छण-इन्दु मरुग्गहे, ण कंपंतु विमुखा।
-पउमचरित -३ निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं । वाते विनय करउँ सब पाहीं ॥ करन चहउँ रघुपति गुनगाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकट अंग उपाऊ। मन भति रंक मनोरथ राऊ॥ मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी । चहिम अमिम नग जुरह न छाछी ।छमिहहिं सजन मोरि विठाई । सुनिहहिं बालवचन मन लाई ॥