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हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन इसी प्रकार विरह, युद्ध, ऋतु, नगर आदिका वर्णन भी पनावतमे भविसयत्तकहाके समान ही हुआ है। देशी भाषाके शब्दोंके स्थानपर तत्सम शब्दोंको रख देनेपर भविसयत्तकहाके अनेक वर्णनात्मक स्थल पद्मावतके हो जायेंगे। __ हिन्दी साहित्यके अमरकवि तुलसीदास पर स्वयंभूकी परमचरिड और भक्सियत्तकहाका अमिट प्रभाव पड़ा है। महापंडित राहुल साकृत्यायनने अपनी हिन्दी काव्यधारामे बताया है कि "मालम होता है, तुल्सी बावाने खयभू-रामायणको जरूर देखा होगा, फिर आश्चर्य है कि उन्होंने खयभूकी सीताकी एकाध किरण भी अपनी सीतामें क्यों नहीं डाल दी। तुलसी बावाने स्वयभू-रामायणको देखा था, मेरी इस वातपर आपत्ति हो सकती है, लेकिन मै समझता हूँ कि तुल्सी बाबाने “कचिदन्यतोपि" से स्वयभूरामायणकी ओर ही सकेत किया है। आखिर नाना पुराण, निगम, आगम और रामायणके बाद ब्राह्मणोका कौन-सा ग्रन्थ वाकी रह जाता है, जिसमे रामकी कथा आयी है। "कचिदन्यतोपि"से तुलसी वावाका मतलब है, ब्राह्मणोक साहित्यसे वाहर "कहीं अन्यत्रसे भी” और अन्यत्र इस जैन अन्थमे रामकथा पड़े सुन्दर रूपमे मौजूद है। जिस सोरो या सूकरक्षेत्रमे गोखामीजीने रामकी कथा सुनी, उसी सोरोंमें जैन-घरोमे खयमू-रामायण पढ़ी जाती थी। रामभक्त रामानन्दी साधु रामके पीछे जिस प्रकार पड़े थे, उससे यह विल्कुल सम्भव है कि उन्हे जैनोके यहाँ इस रामायणका पता लग गया हो। यह यद्यपि गोस्वामीनीसे आठ सौ बरस पहले बना था किन्तु तद्भव शब्दोके प्राचुर्य तथा लेखको वाचकोके जब-तबके शब्द-सुधारके कारण भी आसानीसे समझमे आ सकता था।
-गोस्वामी तुलसीदासका जन्म सं १५८९ और स्वयंभूदेवका
ईस्वी सन् ७७०। २-हिन्दी काव्यधारा पृष्ठ ५२ ।