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परिशिष्ट
परिशीलित ग्रन्थोंके कतिपय प्रमुख ग्रन्थ रचयिताओंका अति संक्षिप्त परिचय
महाकवि स्वयम्भूदेव - महाकवि स्वयम्भूदेवके पिताका नाम मारुतदेव और माताका नाम पद्मिनी था। इनका समय ईस्वी सन् ७७० है | यह गृहस्थ थे, इनकी दो पत्नियाँ थी । एकका नाम आदित्याम्वा और दूसरीका सामिअव्वा था । पुष्पदन्तके महापुराणकै टिप्पणसे अवगत होता है कि यह 'आपुली सघीय' थे । यह पहले धनञ्जयके आश्रित थे, इस समय इन्होंने पउमचरिउकी रचना की थी । इसके पश्चात् इन्होने धवलडयाका आश्रय ग्रहण किया था और इस समय इन्होने 'रिटुणेमि - चरिउ' का प्रणयन किया ।
स्वयम्भूदेव के अनेक पुत्र थे, इनमे त्रिभुवनदेव बहुत प्रसिद्ध और सुयोग्य विद्वान् थे | यह बचपन से ही पिताके समान कविता करने लगे थे । पउमचरिउमें बताया गया है कि यदि त्रिभुवनदेव न होता तो पिताके काव्योंका, कुल और कवित्वका समुद्धार कौन करता । अन्य व्यक्ति जिस प्रकार पिताके धनका उत्तराधिकार ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार त्रिभुवनने अपने पिता के सुकवित्वका उत्तराधिकार लिया । स्वयम्भूका वश ही कवि था । इनके पिता मारुतदेव भी अच्छे कवि थे । स्वयम्भूने अपने छन्दशास्त्रमें 'तहाय माउर देवस्स' कहकर उनके एक दोहेका उदाहरण स्वरूपमें उल्लेख किया है ।
अपभ्रंश भाषाके इस महाकविने पउमचरिउ — जैन रामायण और रिहणेमिचरिउ ये दो महाकाव्य एवं पद्धड़िसाबद्ध, पन्चमी चरिउ ये दो अन्य काव्य ग्रन्थ रचे थे | इनके अतिरिक्त 'स्वयभूच्छन्दस' नामक अपभ्रशका छन्द ग्रन्थ तथा अपभ्रंशका एक व्याकरण भी लिखा था । यह व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध तो नही है, पर रामायणमे निम्न प्रकार उल्लेख मिलता है।
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