SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ हिन्दी-जैन साहित्य परिशीलन यह कोग भी हिन्टी-मापा-भाषियों के लिए अत्यन्त उपयोगी हरिचनागल मरस और मुन्टर है । कविने त्वयं ही कहा है- अर्थ अनेक जु नामक माला मनिय विचारि" नमूने के लिए गौ और सारग गब्दकं पर्यायवाचं शन्द नीचे दिये जाते है गो धर गो तरु गो दिसा गो किरना आकास । गो इन्द्री जल छन्द पुनि गो वानी जन भास ॥ -गो-गब्द कुरकटु काम कुरंगु कषि कोफु कुंभु कोदंड। कंनरु कमल कुठार हल झोड कोपु पत्रिदंडु ॥ करटु करयुक्हरु कमटु कर कोलाहल चोरु । कंचनु काकु कपोतु महि कंवल कलसर ना ॥ खगुनगु चातिगु दंग खलु खरु खोदनउ कुदालु। भूधरु भूरुह भुवनु मगु महु भेक्त अरु कालु ॥ मेनु महिषु उत्तिम पुरुसु यु पारस पापानु । हिमुनमु ससि सूरजु सलिल बारह अंग बखानु॥ दीप पु काजलु पधनु मेघु सबल सब मुंग। कवि सु भगौती उच्चई ए कहियत सारंग ॥ -सारग
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy