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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन पूर्ण नीतिका उन्मूलन कर अनेकनामे एकता, विचारोमे उदारता एव सहिष्णुता उत्पन्न करता है। यह विचार और कथनको संकुचित, हठ एव पक्षपातपूर्ण न बनाकर उदार, निष्पक्ष और विशाल बनाता है। वस्तुतः जीवन अहिंसक तमी बन सकता है, जब आचार और विचार दोनो अहिंसक हो जायें । पूर्ण अहिसक ही राग-द्वेष और कर्म-बन्धनका ध्वंसकर मोक्ष या निर्वाणको प्राप्त करता है। मानव-जीवनका चरम लक्ष्य निर्वाण या मोक्षको प्राप्त करना ही है।
इस समित दार्शनिक विवेचनकै प्रकाशमें हिन्दी-जैन-साहित्यकी पृष्ठभूमिकी निम्न भावनाएँ है:
सम्यग्दर्शन जन्य
१-अपनेको स्वयं अपना भाग्यविधाता समझकर परोम शक्तिईश्वरादि शक्ति सुख-दुःख देनेवाली है, विश्वासको छोड़ पुरुषार्थमें प्रवृत्त होना।
२-आत्माके अस्तित्वका विश्वासकर मन-वचन-कायके अपने प्रत्येक क्रिया-व्यापारको अहिंसक वनाना।
३-अपने पुरुषार्थपर विश्वासकर सर्वतोमुखी विशाल दृष्टि प्राप्त करना।
४--राग-द्वेषादि सस्कार अनात्ममाव है, यह विश्वास उत्पन्न करना। सम्यग्ज्ञान जन्य
१-चैयक्तिक विकासके लिए हृदयकी वृचियोसे उत्पन्न अनुभूतियोको विचारके लिए बुद्धि के समक्ष उत्पन्न करना और बुद्धि-द्वारा निर्णय हो जानेपर कार्यमें प्रवृत्त हो जाना।
२-विरोधी विचार सुनकर घबड़ाना नहीं, अपने विचारोके समान अन्यके विचारोका मी आदर करना तथा अपने विचारोपर भी तीन आलोचनात्मक दृष्टि रखना।