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प्रकीर्णक कान्य
पाँचवी दालमे संसारकी वास्तविकताका निरूपण करता हुआ कवि कहता है
"जोवन गृह गोधन नारी, हय गय जन आज्ञाकारी।
इन्द्रिय-भोग छिन थाई, सुरधनु चपला चपलाई ॥" छठवी ढालमें जीवनके आदर्शोको निरूपण करते हुए कहा है
'यह राग माग दहै सदा, तातै समामृत सेइये। इस प्रकार इस छोटी-सी कृतिमे जीवनको यथार्थताका चित्रण किया गया है।
छहढालाकी एक बहुत बड़ी विशेषता यह भी है कि इसमे समूचे जैन दर्शनको, पारिभाषिक शब्दावलिके आधारपर सरस और सरल रूपमे गुम्फित कर दिया गया है।