________________
आध्यात्मिक रूपक काव्य
१५९
पूर्ण रूपसे अनुभव था, अतएव अपनी प्यारी पुत्रीको समझाते हुए कहने लगा-"वेटी, चिन्ता मत करो, मेरे रहते हुए ससारमे ऐसा कोई नहीं है जो तुम्हारा परित्याग कर सके। मै तुम्हारे पतिकी बुद्धिको ठिकाने पर लाता हूँ। अभी अपने समस्त सरदारोंको बुलाकर चेतनके पास भेजता हूँ | जबतक वह सुबुद्धिको निकालकर तुमको अपने घरमे स्थान नहीं देगा, प्यार नही करेगा तबतक मैं चुप होने का नही। मेरी और मेरे योद्धाओकी शक्ति महान् है।"
इस प्रकार कुबुद्धिको समझा-बुझाकर मोहने अपने चतुर दूत 'कामकुमार को बुलाया और उसे आदेश दिया कि तुम चेतन राजासे जाकर कहो कि तुमने अपनी स्त्रीका परित्याग क्यो कर दिया है। या तो हाथ जोडकर क्षमा याचना करो, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
दौत्यकर्ममे निपुण काम-कुमारने सोहका सन्देश जाकर चेतन राजासे कह दिया । वाद-विवादके उपरान्त चेतन राजा भी मोहसे युद्ध करनेको तैयार हो गया। मोहने महापराक्रमशाली क्रोध और लोभ योद्धाओंको चेतनराजको पकड़नेके लिए आमन्त्रित किया ।
राग और द्वेष दोनो मन्त्रियोने नानातरहसे परामर्शकर चेतनराजको आधीन करनेका उपाय बतलाया। ज्ञानावरणने मन्त्रियोको प्रसन्न करनेके लिए चाटुकारिता करते हुए कहा-"प्रमो! मेरे पास पॉच प्रकारकी सेनाएँ हैं, मैंने एक चेतनकी बात ही क्या, सारे ससारको अपने आधीन कर. लिया है। मै, आप जिस प्रकार कहें, चेतनराजको बन्दी बनाकर आपके सामने प्रस्तुत कर सकता हूँ। मेरी शक्ति अपार है, जहाँ-जहाँ आपको अज्ञान दीख पड़ता है, वह मेरी कृपाका फल है।"
इसी समय दर्शनावरणने अपनी डीग हॉकते हुए कहा-"देव ! मै अपने विषयमे अधिक प्रशसा क्या करूँ, मैने तो चेतनकी वह दुरवस्था कर रखी है, जिससे वह कहींका नहीं रहा है। मुझ-जैसे सेनानीके रहते हुए आपको चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं" । अवसर पा इसी समय