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आध्यात्मिक रूपक कान्य और धर्म-क्रियाओंको लुस कर देता है । परिश्रम और शक्तिका अभाव हो जानेपर शोक नृपका शासन अधिक दिनों तक चलता है। जीवनमें अगणित विद्युत्-कण नृत्य करने लगते हैं। प्रलयकालीन मेघोंकी मूसल्लाधार वर्षा होने लगती है। जीवन-समुद्रमे यह धूर्त वाड़वाग्नि उत्पन्न करता है, जिससे वह गुरु गर्जन-तर्जन करता हुआ क्षुब्ध हो जाता है तथा नाना प्रकारके भयकर और विषैले जन्तु आत्माकी शक्तिका अपहरण कर लेते है।
चौथा ठग है भय । जीवन-पथको विषय और भयकर बनानेमें यह अपनी सारी शक्ति को लगाता है। उल्लास, पूर्ति, तेज और गतिशीलता आदि सभी प्रवृत्तियोम ज्वालामुखी विस्फोटन होने लगता है। जीवननौका डॉड न लगनेसे तथा पतवारके अस्थिर होनेसे अनिश्चित दिशाकी
ओर विभिन्न विकारजनित लहरों के साथ थपेड़े खाती हुई प्रवाहित होती जाती है। इस ठगका आतक इतना व्यास रहता है जिससे सामनेका कगार मी धुंधला ही दृष्टिगोचर होता है। जीवनमे अगति और अनिश्चितवा इसीके कारण आती है तथा भयाक्रान्त व्यक्ति जीवनमे सुनहले प्रभातके दर्शन कभी नहीं कर पाते है । जीवनका प्रत्येक कोना इस ठगके कारण अरक्षित रहता है। यह रात्रिमे ही धोखा नहीं देता, चोरी नहीं परता प्रत्युत दिनमें भी निघड़क हो अपने कार्योंका सम्पादन करता है। जीवनको विकासशील त्यितिको डावॉटोल करना इसीका काम है।
जीवन-मार्गका पाचवॉ ठग कुकया है। रागात्मक चर्चाएँ आत्माभावनाको आवृतकर अनात्म-भावनाओंको उबुद्ध करती है। जिस प्रकार प्रल्यकालम समुद्रके जल-जन्तु विकल हो उछल-कूद मचाते है, उसी प्रकार कुऋथाओके कहने और सुननेसे मानसिक विकार आत्मिक भावोका मन्थन करते है, जिससे आत्मिक शक्तियों कुटित हो जाती है। आत्मचेतना लुप्त हो जाती है और जीवनमे विकारोका तूफान उठकर जीवनको परम अगान्त बना देवा है। मानव प्रकृत्या कमजोर है, वह कुत्सित