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________________ ऐतिहासिक गीतिकाव्य निर्माण करायी । गीतमें अनेक राष्ट्रिय और अहिंसक भावनाओके साथ उक्त ऐतिहासिक तथ्य व्यञ्जित किया है-' उदय के खरतरगच्छ गयणि, अभिनउ सहस करो । सिरी जिणप्रभुसूरि गणहरो, जंगम कल्पतरो ॥ X X X हरखितु देइ राय गय तुरय, धण कणय देस गामा । भणइ अनेषि जे चाह हो, ते तुह दिउ इमा ॥ लेड हु किंपि जिणप्रभसूरि, मुणिवरो अतिनिरीहो । श्रीमुख सलहिउ पातसाहि, विधिहपरि सुणि सीहो ॥ X X X 'असपति' 'कुतुबदीनु' मनरंजेड, दीठेलि निणप्रभ सूरी ए । एकन्तिहि मन सासउ पूछई, राममणोरह पूरी ए ॥ गाम भूरिय पटोला गजवल, ठठ देह सूरिताणू ए । जिणप्रभसूरि गुरुकम्पनई छह, तिहु अणि अमलिय माणू ए ॥ ढोल दमामा अरु नीसाणा, गहिरा बाजद्द तूरा ए । इनपरि जिनप्रभसूरि गुरु आवद्द, संघ मणोरह पूरा ए ॥ एक दूसरे 'गीतमे बताया गया है कि जिनदत्त सूरिने बादशाह सिकन्दरशाहको, जो बहलोल लोदीके उत्तराधिकारी थे, अपना चमत्कार दिखलाकर ५०० वन्दियोको मुक्त कराया था । इस गीत में अनेक उपमा और उत्प्रेक्षाओंका आश्रय लेकर अन्य ऐतिहासिक तथ्यके साथ जीवन की सरस अनुभूतियोकी भी अभिव्यंजना सुन्दर हुई है । १. ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह पू० १३-१४ । २. ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह पृ० ५३-५४ |
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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