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________________ दौरत-चैनपदसंग्रह। दुस पाये, निकम कबहु नर याप । गर्म जन्मशिशु नरपरद दुस, सहे कई नहि जाय । चेतन० ॥ ५॥ फरहूं किंचित पुण्यपात चरविधि देव पहाय । विषयमाय मन पास लही तई, पान ममय विललाय ! चेतन ॥ ६॥ यों अपार भयारवारमें, भ्रम्यो अनन्त काल दोलत अब निनमावनाव नदि, ले मनाविकी पाल ।। चेतन०॥७॥ जिन गगटोपत्यागा वह सतगुरू मारा | जिन राग. ।। टेक ।। वन राजरिद तृणवत निज काज समारा। जिन रागः ॥२॥राता है वह वनखंडमें, धरि ध्यान गरा। जिन मोर महा तरुको, जामृल उखारा | जिन राग।२। सांग तम परिमद विगवर भरा | अनंतनानगुनसमुद्र चारित्र मैंटारा।। जिन राग०॥ ६॥ शुल्लामिको प्रनाळके वसु फानन जारा । ऐसे गुरुको दोक है, नमोऽस्तु हमारा। जिन राग० ॥४॥ चिदरायगुन सुनो सुनो प्रशस्त गुरुगिरा । समस्त तन विमान, हो सकीपमें घिरा विद० ॥ टेक ॥ निमारके २ नर पर रामधनी मामा , सपाट भी मा.
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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