SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दौलत-जैनपदसंग्रह। रागरुख हर जिय, शिवतट निकायौ। आप० ॥ ४ ॥ विमल सौख्यमय सदीव, मैं हूं मैं नहिं अजीव, जोत होत रजुमय,, भुजंग भय भगायौ । प्राप० ॥ ५ ॥ यौँ ही जिनचंद सुगुन, चिंतत परमारय चुन, वौल भाग जागो जद, अल्पपूर्व पायौ । आप० ॥६॥ विषयोंदा मद भान, ऐसा है कोई वे ॥ टेक ॥ विषय दुःख अर दुखफल तिनको, यौं नित चित्त न ठाने । विषयोंदा० ॥१॥ अनुपयोग उपयोग स्वरूपी, तनचेतनको मान । विषयोंदा०॥२॥ वरनादिक रागादि भावत, भिन्न रूप तिन' जानें । विषयोंदा० ॥३॥ स्वपर जान रुपराग हान, निजमें निज परनति सानै । विषयोंदा० ॥ ४ ॥ अन्तर वाहरको परिग्रह तजि, दौल वसै शिवथान । विषयोंदा० ॥५॥ और सबै जगद्वन्द मिटावो, लो लावो जिन भागमओरी । और० ।। टेक ॥ है असार जगद्वन्द्व वन्धकर, यह कछु गरज न सारत तोरी । कमला चपला, यौवन सुरधनु,स्वजन पथिकजन क्यों रति जोरी ॥ और० ॥१॥विषय २ विषयोंका (पंजाबी) ३ लक्ष्मी। ४ विजली । ५ इन्द्रधनुष ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy