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________________ दोन-बैनपदसंग्रह। शिवपुरको डंगर सपरसमों भरी, मो विषयविरमरचि चिरविसरी। शिब० ॥ टेक ।। मम्यकदर पोपप्रतपय भव, दुसदावानल मेवमरी। शिवपुर० ॥ १ ॥ तादिन पाय तपाय देह बहु, जनमपरन करि रिपति भरी । काल पाय जिनधुनि सनि में जन, ताहि लई मोई धन्य घरी ॥शिव० ॥२॥ ते जन धनि या मांहि चन्न निन, निन कीरति सुरपति उचरी । विपयचाह भवराह त्याग पर, दौल हरो रनरसिमरी ॥ शिवपुर ॥ ३ ॥ ७४ तोहि समझायो सौ सौ पार, जिया तोहि सममायो. ॥टेक ॥ देख सुगुरुकी परहितमे रति, हिन उपदेश मुनायो। मौ सौ वार० ॥ १॥ विषयभुजंग सेय सुन्नु पायो पुनि तिनौं लपटायो । सरदविसार रयो परपदमें, पदरत ज्यो मोरायो । सौ सौ बार० ॥२॥ तन मन स्वनन नहीं है. वैरे, नाइक नेह बगायो । क्यों न व अम वाग्द.. - २मार्ग। ३ भारताविया ! ४ी -भार
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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