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________________ दौरत-जैनपटसंग्रह। तुम बानि परपान जे करत भवि, नस निनझी जरामरनजामनवपन | अहो नमि० ॥१॥ महो शिवमौन तुम चानचितौन जे, करत तिन जरन भावी दुखद भवपिन ।। हे भुवनपाल तुम विशदगुनमाल उर, वरं ते टुक कालमें अयपन | अहो नमि० ॥ २ ॥ अहो गुनतू तुमरुप चख सरस करि, लखत सन्तोए मापति मयो नाकप न ।। अन, अकल, तन साल दुखद परिगह कुरोट, दुसहपरिसह सही धार व्रत सार एन । अहो नमि० ॥३॥ पाय केवल सफल लोक फरवत लख्यौ, अंख्यौ हप द्विधा सुनि नसत भ्रमसमझेपन नीच कीचक कियों मीचेत रहित जिम, दौसको पास ले नास मवद्याप पर्न । अहो नमि० ॥४॥ Mon-- प्रभु मोरी ऐसी बुघि फीजिये । रागदोपदावानलमे पच, मपतारसमें भीजिये। प्रभु० ॥ टेक ॥ परमें त्याग अपनपो निमें, लाग न फबई छीजिये। कर्म कर्मफलमाहिं न राचत, ज्ञान मुपारम पीनिये । मयिष्यन्में दुल देनेवाले २ साली वन १३ पच्छ । ४ तमया ५ गुकि ममूह । ६ इन्द्र । नदीदे मागेको भन्म for UPाप ९ गोटे पद । १. उपदेश दिया ! १बन । १२ मयुगे । १३ को ऐसा भी पाठ है।१४पर परापन समार । १५ पदर त. रमीक होने में है। १६ नगन न हो।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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