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________________ ३८ दौलत-जैनपदसंग्रह। प्रभु मोरी० ॥ १॥ सम्यग्दर्शन शान चरननिधि, ताकी प्राप्ति करीजिये । मुझ कारजके तुम बड कारन, परज दौलकी लीजिये। प्रभु मौरी० ॥२ ॥ । वारी हो वधाई या शुभ साजै । विश्वसेन * ऐरादेवीगृह, जिनभवमंगल छाजै । वारी० ॥ टेक ॥ सब अमरेव, अशेष विभवजुत, नगर नागेपुर पाये। नाम-दत्त सुरइन्द्रवचनतै, ऐरावत सज धाये। लखजोजन शतवदन वदनवसु, रद प्रतिसर ठहराये । सर-सर सौ-पन वीस नलिनमति, पदम पचीस विराने । बारी हो० ॥ १॥ पदमपदमप्रति अष्टोत्तरशत, ठने सुदल मनहारी। ते सव कोटि सताइसपै मुद, जुत नाचत सुरनारी। नवरसगान ठान काननको उपनावत सुख मारी। बैंक ले लावत लंक लचावत, दुति लखि दामनि खाने । पारी हो० ॥२ ॥ गोप गोपतिय जाय मायढिग, करी तास थुति सारी। सुखनिद्रा जननीको कर नमि अंक लियो जगतारी । लै वसु मंगलद्रव्य दिशसुरांचली अन शुभकारी। हरखि हेरी , चख सहस करी तन, जिन पर निरम्बनकाजै । चारी हो० ॥३॥ ता गजेन्द्रपै 11१ शान्तिनाथ भगवानकी माता ।२ भगवानके जन्मका उत्सव । ३ सम्पूर्ण । ४ हस्तिनापुर ।५ कुवेर । ६ दात । ७ गुप्त रूपसे । ८ इन्द्राणी । ९ गोदमें। १० भगवानको। ११ दिकन्यका देविया । १२ इन्द्र ।
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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