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________________ दौलत - जैन पद संग्रह | ५२ आज मैं परम पदारथ पायौ, प्रभुचरनन चित लायौ । भाज० ॥ टेक ॥ अशुभ गये शुभ प्रगट भये सहजकल्पतरु छायौं । आज० ॥ १ ॥ ज्ञानशक्ति तप ऐसी जाकी, चेतन पद दरसायो । आज० ॥ २ ॥ अष्टकर्म रिपु जोधा जीते, शिव अंकूर जमायौ । आज० ॥ ३ ॥ ३६ ५३ नेमिप्रभूकी श्यामवरन छवि, नैनन छाय रही ॥ टेक ॥ गणिमय तीनपीठपर अंबुज, तापर अधर ठही । नेमि० ॥ १ ॥ मार* मार तप घार जार विधि, केवलऋद्धि लही । चारतीस प्रतिशय दुतिमंडित नर्वेदुगदोष नही । नेमि० ॥ २ ॥ जाहि सुरासुर नमत सतत, मस्तकतें परस मेंही सुरगुरुवर अम्बुजमफुलावन अद्भुत भान सही । नेमि० ॥ ३ ॥ घर अनुराग विलोकत जाको, दुरित नसे सब ही । दौलत महिमा अतुल जासकी, कापै जात कही । नेमि० ॥ ४ ॥ । ५४ अहो नमि जिनप नित नमत शेत सुरप, कंदर्पगर्ज दर्पनाशन प्रबल पॅनलपन | अहो ० ॥ टेक ॥ नाप * कामदेवको मारके । २ अष्टादश । ३ निरन्तर । ४ पृथिवी ५ सौ इन्द्र | ६ कामदेव 1७ गर्व । ८ पनपी है, रूपन जिसके ऐसा पंचानन अर्थात् सिंह | }
SR No.010037
Book TitleDaulat Jain Pada Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages83
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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