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दश-वकालिक-सूत्र । अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
वलिवे तोमार भिक्षा अग्राह्य आमार । भलिया गियाछ तमि यति व्रताचार ||४२४२ दोषयुक्त पानाहार बहुविध आछे । शङ्कार' कारण उहा साधुदेर काछे ।। उद्गमादि दोषयुक्त किम्बा दोषहीन'। शङ्कार कारण याहा, बुझना प्रवीण ॥ ना लइवे सेइ भिक्षा गृहस्थ भवने। बलिवे शङ्कित भिक्षा 'लइव केसनें। अभिप्रेत नहे भिक्षा वलि साधु जन। शङ्का स्थान परित्यजि करिवे गमनं ॥४४ सचित्त जलीयं कुम्भ शिला काष्ठासन ।। मृत्तिका चिक्कण वरतु-आवृत भांजन।। तार मध्ये साधुतरे यदि खाद्य राखे। लवेना से भिक्षा साधु नेहारि स्वचोखे । ढाका भिक्षा-पात्र खुलि भिक्षार समये ।" भिक्षा दिते चाय केह तत्त्व ना बुझिये। बलिवे अयोग्य भिक्षा विधि-वहिर्भूत । लइवना इहा-मोर नहे अभिप्रेत ॥४॥४६ आहाळ, पानीय गृही खाध, स्वाध, आदि । प्रस्तुत करिया राखे दान हेतु यदि . जाने यदि साधु इहाँ निज-बुद्धिवले। गृहस्थेर मुखे किम्बा उचारितहले॥ . .