SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दश वंकालिक सूत्र | अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश । विचारि पूर्वोक्त तत्त्व लये अनुमति । भिक्षार निर्दिष्ट स्थाने यान सिद्ध-यति ॥ २४ दाँड़ाइवे कोनस्थाने सुविज्ञ साधक । वर्णिव एक्षणे ताहा मङ्गलकारक ॥ परिमित स्थान हेरि साधु दांड़ाइवे । स्नान-स्थान पायखाना कभु ना हेरिवे ॥२५ जितेन्द्रिय साधु सदा करिव वर्जन । वक्ष्यमाण स्थानगुलि हमरि प्रवचन || भूमिमाग याहा हय जीव पूर्ण सदा । जलपूर्ण पथ नाला यथा करे कांदा ॥ हरित वर्णेर यथा थाके वनस्पति । सजीब वृक्षेर वीज यथा करे स्थिति ||२६ गृहद्वारे उपस्थित भिक्षार कारण । यदि देखे कोन भिक्षु, साधु तपोधन ॥ आनिले साधुर लागि पानीय आहार | उहा हते लइवेना अप्राह्य सवार ॥ लइवार योग्य याहा ग्रहण करिवे । वर्जनीय वस्तु साधु सामहे त्यजिवे ॥२७ गृहिणी कखन भिक्षा अनिवार काले । भिक्षा हते किछु यदि क्षिपे भूमितले ॥ घटिले एमन कर्म्म गृहस्थेर वाड़ी । चलिवे तखन साधु दात्रीके नेहारि ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy