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________________ दश-वैकालिक-सूत्र । अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश । क्षुद्र वृष मेष आर कुकुर वालक । गृह द्वारे यदि थाके प्रवेशवांधक ।। हटाइया पद द्वारा करि उल्लंघन । करेना प्रवेश गृहे साधुरा कखन ।।२२ दोषहीन गृहे साधु भिक्षार्थी याइयो । करिवे किरूप कार्य कहिव वर्णिया। हेरिया स्त्रीजन कभु श्रावकेर घरे। करिवेना स्थिरष्टि स्त्रीचक्षु उपरे॥ उहा द्वारा अपरेर मनेर वेदना। कदापि जन्मिते पारे करिवे धारणा॥ . नाना रोग द्वारा कभु साधु कष्ट पाय। पूर्वोक्त कारणे साधु नारीना ताकाय ।। दानकारि-स्थित स्थान नयने हेरिवे। अति दुरे कभु साधु दृष्टि ना करिवे।। चक्षु विस्तारित करि देखिवेना धन । गृह परिच्छद आदि साधुरा कखन ।। ना पाइले साधु भिक्षा फिरिवे तखन। करिवे ना दीन वाक्य कभु उच्चारण ॥२३ अवस्थार तारतम्य सम्यक् जानिया। भिक्षा योग्य स्थान कोथा देखिवे बुझिया ॥ . उत्तम मध्यम किम्बा के हय अधम । भिक्षा दाने शक्ति कार आछे कि रकम ।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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