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________________ दश-कालिक सूत्र | अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश । श्रावकेर रुद्ध द्वार साधुरा भवने । आज्ञा पेये खुलिवेना विशेष कारणे ॥१८ मलमूत्र त्याग करि पुनः भिक्षाकाले । मल ओ मूत्रेर वेग साघुर हइले । करिवेना उहादेर वेगेर धारण । ना हवे द्वितीय वारे नियम लखन || आज्ञाक्रमे गृहस्थेर जीव शून्य स्थान । खुजिया लइवे साधु पाने परित्राण ॥१६ यावे ना भिक्षार लागि किरूप गृहेते । वर्णिव अधुना ताहा जैनशास्त्र - मते ॥ ये घरे दरजा नीचा घोर अन्धकार | मृक्ष्मकीट दृप्ट कभु ना हय काहार ॥ ये ये स्थाने नेत्रशक्ति नष्ट हुये याय । प्रवेश साधुर नय उचित तथाय ॥२० याइवे किरूप गृहे कोथा ना याइवे । कोन गृह हते साधु फिरिया आसिवे ॥ वर्णिव एक्षणे सेइ नियम प्रधान । शुनिले साधुरा हवे प्रफुलपराण ॥ गृहे वा गृहेर द्वारे विक्षिप्त था किले । सजीव कुसुम वीज आर्द्रा मूमि-तले ॥ लेपनेर जले द्वार गियाछे. भिजिया । याइवे ना तथा साधु भिक्षार लागिया ॥ २१ • ५५"
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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