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दश-वैकालिक सूत्र चतुर्थ अध्ययन।
संसारे संयोग आछे विविध प्रकार। वाह्य आर आभ्यन्तर अलीक असार ।। मस्तक - मुण्डन साधु बाह्यतः करिवे । भावाशक्ति दूर करि स्वगृह त्यजिवे ॥१८ द्रव्यभाव मुण्डनेते हये शुद्द मति । गृहत्याग करि याय मुक्ति-कामी यति ॥ हिंसा आदि-रिपु बल नाशि साधु धाय । धम्मपथे सम्बरादि पालिया धराय ।।११ उतकृष्ट सम्वर धम्म लभिया साधक । मिथ्याष्टि-प्राप्त कर्म, रजः अनर्थक ॥ आत्माते संलग्न याहा चेदना दायक। आत्मा हते सुविछन्न करे साधु लोक।। दृढ़ रूपे आत्ममूक्ति कर्म वजः हते। करि सुख भूजे साध विशुद्ध जगते ॥२० मिथ्या कम्मरजः दूरे त्यजिया साधक । त्यजे मोह आवरण, शमादि नाशक ।। दिव्य-ज्ञान लभे साधु, ज्ञेय विषयेर। अनन्त अशेष दृश्य वस्तु समूहेर ॥२१ साधुर हृदये यवे पूर्ण ज्ञानोदय । सम्पूर्ण दर्शन शक्ति साधु प्राप्त हय ।। जिन साधु हन जेता रागेर द्वषेर । केवली विज्ञानी हन बुझि तत्व ढेर ।।