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________________ दश-वैकालिक-सूत्र । चतुर्थ अध्ययन। चतुर्दश-रज्जू-मित लोक सुविस्तार । अलोक अनन्त साधु जानेन अपार ॥२२ लोक अलोकेर जानि तत्त्व साधुजन । काय मनो देह वृत्ति करेन दमन ॥ अचल-पर्वत-मत दृढ़ - वद्ध - मन । सस्थिर अवस्था एक साधु प्राप्त हन ।।२३ निरोधिया चित्त साधु योगेर प्रभावे । अचल-पवंत-मत स्थिरचित्त यवे॥ सर्वविध कम्मे क्षय करि तपोबले । कर्म रजः हते सदा चिर मुक्त हले॥ महान् पुरुष रूपे धरार भूषण । निर्वाणेर शुभपथे करेन गमन ॥२४ कम्मक्षय करि साधु कर्म मुक्त हन । आत्मार सिद्धिर पथे करेन गमन ।। त्रिलोक उपरे थाकि योगी योगरत । लभे सिद्धि चिरन्तन नूसुर-बन्दित ||२५ अक्षर सुखेर आशा करे येई जन ! भावि सुख लाभे यार लालायित मन।। अतिक्रमि शुभवेला करेन शयन । शरीर शोभाय जले अङ्ग प्रक्षालन ।। असाधु वलिया भवे कीर्तित येजन । सगति जानिओ तार ना हवे कखन ॥२६ .
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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