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दश-वकालिक-सूत्र।
चतुर्थ अध्ययन । ताहाके रक्षिते पारे किरुपे.सेज़न । केमनेवा से करिवे संयमे यतन ||१२ जीवाजीव-ज्ञाने यवे तत्त्वज्ञान लभे। संयम बुझिते पारे साधु सनभावे ||१३ ज्ञानेते करिया कभ, धरि मनोवल। साधुरा लभिछे ताइ क्रियाय सुफल । जीवाजीव-तत्त्वे यचे अभिज्ञ हुइवे । नरकादि जीवगति बुझिते पारिवे ।।४ कर्मेर विचित्र गति जीव प्राप्त हय । नरकादि वहुविध अति दुःखमय ॥ जानि साधु कर्मफल जीवेर सतत । पापपुण्य वृन्ध मोक्ष बुझे समाहित ॥५ पापपुण्य वन्ध मोक्षे लभि शुद्ध ज्ञान । माया मुक्त हन साधु स्थिर करे प्राण ॥ एजगते देवतार किम्बा मानुपेर। दुःखफल बुझे योगी सकल भोगेर ॥१६ देवतार मानवेर सारशून्य भोग । बुझिवे यखन साधु लभि आत्मयोग। घृणाभावे देखिवेक विचित्र विपय । थाकिवेना क्रोध मान आदि विषमय ।।
आभ्यन्तर वाह्य द्रव्य आदि भोगचय । ___ उहार संयोग साधु छाडिवे निश्चय ॥