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दश-वैकालिक-सूत्र |
चतुर्थ अध्ययन |
पालन करिले दया. साधु सिद्ध हय । सुज्ञानेर प्रयोजन तवे केन रय ? ॥ एइरूप शङ्का सदा साधुर हाइवे । जीवदया का ज्ञान सफल बुद्धिवे ॥ एइरूंपे बुके साधु विचार करिया । पवित्र उपाय कन सन्तोष लभिया । प्रथमेते ज्ञानलाभ साधुरा करिवे । जीवरक्षा हेतु परे दया प्रकाशिवे ॥ अन्धतुल्य हले तर किरूपे चलिवे । पाप पुण्य केमने वा विचार करिवे ? ||१० ज्ञानलाभे कि उपाय शास्त्रकारमते । वर्णिव एक्षणे तार तत्त्व प्रकाशिते ॥ कल्याणं स्वरुप दया पवित्र परम | उहाके बुकिते पारे पड़िया आगम ॥ असंयम अतिपाप दुःखेर कारण । पापेर चरम फल नरकगसन || संयम ओ असंयम वहे भिन्न फल । हितकर पथे याय साधुरा केवल ॥ स्वकीय हितेर तरे संयमे थाकिया । भुजे साधु चिरसुख प्रफुल्ल हइया ॥ ११ पृथ्वीका आदि जीव ना जाने येजन | हिरण्यादि अजीव ये बुना कखन ॥
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