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दश-वकालिक-सूत्र। चतुर्थ अध्ययन ।
चलिते थाकिते पाप अवश्य करिवे। वसिते शुइते पाप भक्षणे हइवे ॥ शरीरेर सञ्चालन करिवे उहाते। स्थगित किरुपे हिंसा हवे नरइते॥७ हिंसा भिन्न जीवगण कोन कार्य करे। हिंसा पापे वद्ध नर अवनीमाझारे। भ्रमणे शयने नर किम्बा अवस्थाने । भक्षणे करिछे पाप केवा कत जाने । प्रतिकार किवा नर जानेना धराय । साधुमुखे कभु सेइ तत्त्व जाना याय ॥ कष्टप्रद भिक्षुव्रत साधुरा लइया। चलिवे अहिंस साधु सतर्क हइया ।। इतस्ततः हस्त पद कभु ना फेलिवे । संयमे तत्पर हये साधु दौडाइवे ॥८ ये साधु प्राणीके सब देखे समज्ञाने । हिंसा आदि आस्रवेर तत्पर दमने ॥ जितेन्द्रिय थाके सदा तपस्या लइया। आगमोक्त विधिपाले सतर्क हइया ॥ पृथ्वी आदि जीव हेरि आपन समान । सुख दुःखे हय भागी प्रशस्तपराण ॥ सेइ भवे त्यजि पाप करे विचरण । हइवेना तार पाप-कम्मर - बन्धन 18