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________________ दश-वैकालिक-सूत्र । चतुर्थ अध्ययन। वसि अयतने जीव स्थावरादि शत । नाश करे दुराचार नराधम यत ।। पापे वद्ध हये सदा दुःख भयङ्कर । परिणामे पाय सदा पापासक्त नर ॥३ अयतने दिवारात्रि करिया शयन । नाशे बसस्थावरादि जीव नरगण ।। पापवद्ध हये भवे विवेकविहीन । परिणामे पाय दुःख पापेते मलिन ॥४ हंसकाक जम्बुकादि खाय ये प्रकार। से प्रकारे खेये खाद्य विविध प्रकार ॥ चञ्चलप्रकृति नर उहादेर मत । नाशे स्थावरादि जीव जगते सतत ।। पापवद्ध नर सदा विवेक - विहीन । परिणामे भुञ्ज क्लेश पापी पुण्यहीनः॥५ याहारा कखन साधु भाषार प्रयोग। करे नाइ दुराचार करि धन भोग ।। याहा ताहा सदा बले बुद्धिहीनं नर । उसस्थावरादि जीव नाशिछे विस्तर ॥ परिणामे. पापवद्ध हये . सर्व्वक्षण । अति दु.ख पाय सदा भवे नरगण ।।६ बद्ध हये हिंसा. आदि पापे सर्वक्षण । कि रूपे धर्मेर काज करे नरगण १ ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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