________________
[१२] . छय मास मात्र अवशिष्ट आछे इहा बुझिते पारिया स्वल्पकाले ज्ञानबृद्धि एवं मुक्ति कामनाय एइ ग्रन्थ दशटि अपराह्न वेलाय (विकाले) लिखिया शेप करेन। रचनाकालेर वैशिष्ट्य रक्षार निमित्त एइ ग्रन्थ "दशवकालिक सूत्र” नामे अभिहित हय। एइ ग्रन्थे जैन भिक्षुकगणेर धर्मरोतिनीति विशदरूपे वर्णित हइयाछे। अहिंसा, संयम, तपस्या, भोगवासना-निवृत्तिर उपाय, अनाचीर्णदोप, पट् कायिक जीव, पञ्चमहाव्रत, भिक्षाविधि, भापार विचार, आहार विधि, गुरुसेवा, विनय, खाद्याखाच विचार, रात्रि भोजन त्याग प्रभृति विपय इहाते दृष्टान्तसहकारे सरल ओ.प्राञ्जल भापाय लिपिवद्ध करा हझ्याछे। एइ ग्रन्थ प्राकृत भापाय गद्य ओ पद्य लिखित हइया।।
उक्त ग्रन्थखानि चङ्गभापाय पद्यानुवाद करिया प्रकाश कराइते धर्मप्राण उदारहृदय जयपुर निवासी शेठ श्रीचाँदमल वाठिया महोदय कृतसङ्कल्प हन एवं पद्यानुवादेर भार आसार उपर न्यस्त करेन । आमि उक्त ग्रन्थेर विवृत्तिगुलि यथारीति वालापद्य लिखिया उहार संशोधनार्थे विक्रमसम्बत् २००७साले कार्तिक मासे चातुर्मास्य उद्यापन काले हांसीस्थित जैन श्वेताम्बर तेरापन्थि-सम्प्रदायेर पूज्यपाद आचार्य श्रीतुलसीरामजी स्वामीर शरणापन्न हइ। ताहार कृपाय एवं परामर्शानुसारे वङ्गभापाय अभिज्ञ श्रीमद् दुलीचाँद स्वामीर निकट याइया प्रथम ओ द्वितीय अध्ययनेर सन्दिग्ध अंशगुलिर संशोधन करि । तत्पर विकानोरेर अन्तर्गत प्रसिद्ध सहर “सहरसहरे” उपनीत हइया काव्यविशारद वैयाकरण श्रीमत् मोहनलाल स्वामीर साहाय्ये ग्रन्थेर प्राय अधिकांश सन्दिग्ध अंशगुलि संशोधन करिया लइ । आमार परमात्मीय सहोदर प्रतिम श्रीजैन श्वेताम्बर तेरापन्थि-महासभार सुयोग्य सभापति श्रीछोगमलजी चोपड़ा वि, एल, महोदय