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[११] श्री शय्यम्भव स्वामी कर्तृक दश वैकालिकसूत्र वीरसम्वत् ७२ साले रचित हय । वोर सम्बत् ६८ साले उक्त ग्रन्थकार निर्माण प्राप्त हन ।
___ दश वैकालिक सूत्ररे प्रणयने मनकमुनिइ प्रधानकारणरूपे प्रख्यात हइयाछेन। यखन श्रीशय्यम्भव भट्ट जैनदीक्षा ग्रहण करेन, संइ समये ताहार धर्मपत्नी गर्भवती छिलेन । एकदा ज्ञातिवर्ग उक्त धर्मपत्नीके जिज्ञासा करेन- "आपनार गर्ने किछु आछे कि? तदुत्तरे तिनि वलेन "मनगम् अर्थात् अल्प किछु आछ। कियत्काल परे यथाकाले शय्यम्भव पत्नी एकटि सुसन्तान प्रसव करेन । मातार प्रत्युत्तरकाले "मनगम्” शब्द उच्चारित हइयाछिल वलिया पुत्ररे नाम मनक राखा हय। मनक दैनन्दिन शशिकलार मत वर्द्धित हइया अष्टम वर्षे उपनीत हन । एकदिन मनक स्वीय जननीके जिज्ञासा करेन "मातः ! "आमार पिता के ? तिनि वर्तमाने कोथाय आछन ? मनक-जननी पुत्रेर निकट पितार प्रव्रज्यार समस्त घटनावली यथायथरूपे वर्णना करेन । मनक मातमुखे पितार संन्यास ग्रहणवृत्तान्त श्रवण करिया तांहार दर्शने समुत्सुक हन एवं शुभदिवसे मातार चरणवन्दना करिया तोहार आदेशे पितृदर्शने आलय हइते वहिर्गत हन। आचार्य-प्रवर श्री शय्यम्भव स्वामी तत्काले चम्पा नगरीते विहार करितेचिलेन। मनक कोन प्रकारे चम्पानगरीते उपनीत . हइया पितार दर्शन लाभ करेन एवं पूर्वजन्मकृत-शुभसंस्कारवशतः भक्तिर सहित पितार चरणवन्दना करेन । मनकेर भक्तिर आधिक्य निरीक्षण करिया श्रशय्यम्भव स्वमी मनकेर परिचय जिज्ञासा करेन । वालकेर परिचये श्रीशय्यम्भव स्वामी वुझिते पारिलेन ये मनक ताहारइ पुत्र। मनक पितार निकट कियन्काल अवस्थान करिया पिता हइते जैनदीक्षा ग्रहन करेण । श्नीशय्यम्भव स्वामी तपरया वले मनकेर आयुः