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दश-वैकालिक सूत्र |
नवम अध्ययन |
प्रथम उद्देश ।
काय मनोवाक्ये सदा भक्ति थोड़ करे । प्रणत मस्तक करि सेविवे तांहारे ॥ १२ लज्ञा दया संयमे वा ब्रह्मचर्य्य पूत । कर्म्ममल दूरकारी नृकल्याणे रत ॥ मुमुक्षु जीवेर कर्म्म मलापनयने । मोरे देन. उपदेश याहारा भुवने ॥ पूजि आमि हितकारी सेइ गुरुजन । भक्तिर सहित सदा करि शुद्ध मन ॥१३
तपन मरीचिमाली प्रभाते येमति ।
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सम्पूर्ण भारत करे समुज्ज्वल अति ॥ आगम स्वरूप श्रुत - वुद्धियुक्त हये । . सुर मध्ये इन्द्र यथा तथा विराजिये ।। जीवादि परम तत्त्व करिया प्रकाश । आचार्य करेन पूर्ण शिष्य अभिलाप ॥१४ पवित्र कार्तिकी पौर्णिमासे समुदित । नक्षत्र - तारका - गणे हये परिवृत ॥ विमल-वारिद-मुक्त सुधांशु आकाशे । शोभित येमन हये सुपमा विकाशे ॥ सेइरूप गणी पूज्य सिद्ध - तपःरत । शोभा पान भिक्षुमध्ये हये विराजित ॥१५
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