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________________ १३४ दश वकालिक सूत्र " नवंम अध्ययन | प्रथम उद्देश । गुरुके ये मने करे अवज्ञा भाजन । पाहाड़ फेलिवे सेइ मस्तके आपन || केशरीके जागाइवे ध्वंसेर कारण । तीक्ष्णधारे करिवेक मुष्टि प्रहरण ॥८ यदि ओ फाटिया याय कदापि पाहाड़ । पड़िया मस्तकोपरि जगते काहार ॥ नाहि खाय सिंह, कारें हइया विव्रत । नाहि काटे तीक्ष्ण धार मुष्टिकृंत हात ॥ सम्भव हइते पारे, लइव मानिया । मोक्ष नाइ गुरुजने अवज्ञा करिया ॥६ जानिओ आचार्य्यपाद अप्रसन्न हले । अवज्ञाय हइवे ना मोक्ष कोन काले ॥ अवाध सुखेर तरे अभिकांक्षी यारा । गुरुके प्रसन्न सदा करिवे ताहारा ॥१० घृतादि आहुति - पूत ज्वलन्त आगुन । यथा नमे आजीवन साग्निक ब्राह्मण || सेइ रूप वहु ज्ञाने ज्ञानी साधुजन । आचार्य्यके भक्तिभरे करेन - पूजन ॥११. शिखान धरमशास्त्र - यिनि शुद्धाचार । प्रदर्शिवे सुविनय निकटे ताहार ॥ ▾
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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