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________________ २.५ मन्त्रा नवम अध्ययन ।. प्रथम उद्देश । काहार जीवन नाश हइते अधिक । कि करे भुजग लभि क्रोध समधिक ॥ आचार्यश्री अप्रसन्न हले साधुजन । मिथ्यात्व अज्ञाने हन पापेर भाजन ।। अपमाने येवा देय गुरुके वेदना । मोक्षलाभ तारपक्षे शुधु विडम्वना ॥५ ज्वलन्त आने येवा विचरण करे | जन्माय ये लोक क्रोध अवाध्य सपैरे || जीवितार्थी येवा करे सर्प विप पान । हाराय ताहारा यथा आपन पराण ॥ 'तेमनि गुरुके येवा करे अपमान । अनायासे भने तार करे दु खदान || ताहार हवे ना मोक्ष भवे कोनकाले । विनाश ताहार हवे निश्चय अकाले || ६ मन्त्रवले भुजङ्गम दंशेना कुपित । दाहशक्ति छाड़े वह्नि मन्त्रवलयुत ॥ मारिते पारे ना कभु हलाहल विप । हते पारे पूर्व्वरूप भवे अहर्निश ॥ अवज्ञा गुरुके करि मोक्ष ना पाइवे । कम्मर बन्धने साधु विपदे पड़िवे ॥७ १३३
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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