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________________ १३२ दश-वकालिक-सूत्र। नवम अध्ययन । प्रथम उद्देश। . कम्मर वैचित्र्य हेतु वयोवृद्ध जन । हृदयेते मन्द बुद्धि करेन धारण । आवार जगते हेरि अत्यल्प वयसे । केह धरे तीक्ष्ण बुद्धि श्रुत-ज्ञानवशे॥ सेइ जन्य कारो ह्य अत्ति शुद्धाचार।। दया. दाक्षिण्यादि गुण विराजे काहार ।। करिवेना अनादर साधुरा गुरुरे। येहेतु मनेर दुःख वाढ़े अनादरे ।। अनल येमति भष्म करिछे इन्धन । अनादर भष्म करे गुणके तेमन ॥३ सर्पके ये दुःख देय करि क्षुद्र ज्ञान । क्रोधोन्मत्त भुजङ्गम नाशे तार प्राण ॥ सेइ रूप येइ जन दु.ख करे दान । अत्यल्प वयस्क जीवे भुलिया विधान ॥ दु.ख भोगी जीच तार नाशेर कारण । हइवे निश्चित इहा शास्त्रेर वचन ।। सेइ रूप यारा करे निन्दा अतिशय । अत्यल्प-वयस्क हेरि आचार्ये निर्दय.. मन्दबुद्धि तारा.हये द्वीन्द्रियादि जाति । .. अंसार संसारे भ्रमे दुःख दिवाराति ॥४
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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