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दश- चैकालिक-सूत्र |
नवम अध्ययन |
प्रथम उद्देश ।
गुणेर आकर या महर्षि सुजन । श्रुत-शील- बुद्धि-युक्त, समाधि मगन । मोक्षेर कारण तारें श्लाध्यं तपोधन । ज्ञानादि लाभेर तरे करिवे पूजन ॥ सन्तोषिवे ताहादेरे प्रकाशि विनय । धर्म्मार्थी शिष्येर इहा कर्त्तव्य निश्चय ॥१६ निद्रादि प्रमाद शून्य मेधावी साधक । शुनि गुरुपूजाफल मोक्षप्रदायक ॥ गुरुर सेवाय सदा थाकेन तत्पर । आराधिया वहु गुण लभेन सत्त्वर ॥ गुरुर कृपाय परे मुकति कारक । सर्व्वश्रेष्ठ सिद्धि लाभ करेन साधक ॥१७ तीर्थकर महापूज्य साधक याहारा । दियाछेन उपदेश हितार्थे ताहारा ॥ स्मरि सेइ उपदेश त्यजि स्वकल्पनां । वलितेछि पूर्वरूप करिओ धारणा ॥ १८
ति नवम विनय समाघि अध्ययनेर प्रथमोद्देशावचूर्णि
समाप्त ।