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________________ १३६ दश- चैकालिक-सूत्र | नवम अध्ययन | प्रथम उद्देश । गुणेर आकर या महर्षि सुजन । श्रुत-शील- बुद्धि-युक्त, समाधि मगन । मोक्षेर कारण तारें श्लाध्यं तपोधन । ज्ञानादि लाभेर तरे करिवे पूजन ॥ सन्तोषिवे ताहादेरे प्रकाशि विनय । धर्म्मार्थी शिष्येर इहा कर्त्तव्य निश्चय ॥१६ निद्रादि प्रमाद शून्य मेधावी साधक । शुनि गुरुपूजाफल मोक्षप्रदायक ॥ गुरुर सेवाय सदा थाकेन तत्पर । आराधिया वहु गुण लभेन सत्त्वर ॥ गुरुर कृपाय परे मुकति कारक । सर्व्वश्रेष्ठ सिद्धि लाभ करेन साधक ॥१७ तीर्थकर महापूज्य साधक याहारा । दियाछेन उपदेश हितार्थे ताहारा ॥ स्मरि सेइ उपदेश त्यजि स्वकल्पनां । वलितेछि पूर्वरूप करिओ धारणा ॥ १८ ति नवम विनय समाघि अध्ययनेर प्रथमोद्देशावचूर्णि समाप्त ।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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