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________________ दश-वैकालिक-सूत्र। अथ षष्ठ अध्ययन। चारित्र्य धर्मे वा मोक्षे कामना संयुत । वाह्य-आभ्यन्तर-ग्रन्थि रहित, सतत ।। साधुदेर एवे शुन क्रिया-कलापादि। भीम दुराश्रय, सेई अन्त हते आदि ॥४ दष्कर, संयम धर्म, उहार आचार । पाईवेना, प्रवचने, कखन काहार ।। 'संयम-भजनकारी, मुमुक्षु, सुजन । याहारा रहेछे विश्वे, तादेर कारण । एखाने आचार धर्म येरूप वर्णन । जिन मतभिन्न शास्त्रे पावेना कखन ।। ५ द्रव्यभावे समासक्त हये संसारेर । व्याधि-हीण रोगयुक्त वालक वृद्धरे।। देश विराधना-त्यागे अखण्ड, सतत । सर्च विराधना त्यागे अति अस्फुटित ।। ये ये गुण राशि हय कर्तव्य धारणे । शुन मन दिया ताहा बलिव एक्षणे ॥६ वक्ष्यमाण अष्टादश स्थानेर आश्रय । करिया वालकेराओ अपराधी हय ।। प्रमादवशतः यदि एक दोष 'रय । निर्गन्थ धरम हते साधु भ्रष्ट हय ॥ ७ दोषेर निदान, सेई अष्टादशस्थान । वर्णण करिब एबे शुन पुण्यवान् ।।
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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