________________
दश-वैकालिक-सूत्र।
अथ षष्ठ अध्ययन। ज्ञान ओ दर्शने युक्त, तपस्या संयमे । आसक्त, विशिष्ट श्रुतधर, धराधामे ।। साधुर तरण-योग्य-उद्याने, संस्थित । धर्मोपदेश प्रदाने नियत प्रवृत्त ।। ईदृश, आचार्य वरे करयोड़े कन । राजवृन्द, राजामात्य क्षत्रिय ब्राह्मणअधुत्ता प्रभो जनेन्द्र , पूज्य आपनार। धमक्रिया कलापादि, चले कि प्रकार ? श२। राजादि क क पृष्ट, साधु जितेन्द्रिय । आचार्य प्रवर, अति प्रशान्त-हृदय ।। शास्त्र-ज्ञाने विचक्षण, जीवहितेरत । सर्वदाई आसेवन-सुखेते संयुत ॥ स्थिरचित्त, संयमेते स्त, तपोधन । पुण्यसयी धर्म-कथा करेन वर्णन ॥ ३