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: दश वकालिक सूत्र |
अथ पंचम अध्ययन द्वितीयोद्द ेश |
'एई रूप कार्य्यं साधु करे कि कारण । ताहार प्रकृत ं तत्त्व करित्र वर्णन || करुण धारणा मोर प्रति साधुगण । मोक्षार्थी हइया एई संयमी सुजन ॥ लाभालाभ प्रीतं करि असारं सेवन | साधारण खाद्य हय सन्तोष प्रवण ॥३४ सम्मान सुरुयाति, साधु पूजार कारणे । माया शल्य आदि पाप करेन जीवने ||३५ केवल्यादि साक्षियुक्त साधक प्रवर । आत्मार संयम रक्षा करिते तत्परं ॥ ना पिवेन सुरा किंम्बा माद्य रसचयं । मेरकादि विगर्हित द्रव्य समूदय ॥३६ अधार्मिक चौर साधु मद्य पान करे । भावे यदि मोर कर्म्म अज्ञात संसारे ॥ ऐहिक वा पारत्रिक दोषदर्शी तार । समुद्धार आमा हते शुनं संविस्तार ||३७ मद्य - पायी साधुदेर आसक्ति ओ प्रीति । मद्य वार्ड, हयं परे स्वपर अख्याति ॥ मद्यभावे अशान्तिर वृद्धि हय अति । असाधुता निरन्तर वाड़े, अधोगति ॥ ३८ मद्यपायी सुदुर्मति स्वीय कर्म्मभीत । चौरेर संदृश हंय उद्विग्न सतत ॥
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