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दश-वैकालिक-सूत्र । अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
ना चाहिये भिक्षा कभु विशिष्ट साधक । चाहिले हइवे दोष विपरिनामक ।। याचना करिले यदि भिक्षा नाहि देय । वलिवे ना कटु वाक्य कदापि कोथाय २६ ना हइवे ऋद्ध साधु वन्दना अभाव। करिवेना, अहङ्कार, राजादिर स्तवे ।। भगवदाज्ञा साधु ये करे पालन । अखण्ड साधुतायुक्त ताहार जीवन ।।३० सरस आहा- याहा मदर्थे आनोत । देखाइले उहा स्वयं आचार्य पूजित ।। लइवेन भावि उहा करिया गोपन । राखे कोन साधु यदि करिते भक्षण ॥३१ आत्मार्थे कल्मषकारी, लुब्ध सेइजन । करे पाप बहुविध करिते भोजन ॥ ना जन्मे आहृत खाद्य सन्तोष याहार । ना हय धैरज त्यागे, मुकति ताहारं ॥३२ आहार्य पानीय लभि विविध प्रकार । पथे खेये घृतयुक्त उत्तम आहार ।। विरस विवर्ण खाद्य आनयन करें। गुरुर निकटे कोन साधु अकातरे ॥३३ पूर्णरूप कार्य करि साधु अकातरे। वक्ष्यमाण चिन्ता साधु पुषिछे अन्तरे।।