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दश - वैकालिक - सूत्र |
अथ पंचम अध्ययन द्वितीयोदश ।
क्लिष्टसत्व, हईयाओ, मरण - कालेते । संवरेर आराधना करना भ्रमते ॥ ३६ तथाविध मद्यपायी ना पूजे कखन । भक्तिभरे करोड़ आचार्य श्रमण || दृष्ट शील तारे जानि गृहबासिगण । निन्दाकरे निरन्तर ताके आजीवन ॥ ४० दुर्गुण धारण करे मद्यपायी जन । अनायासे करे शुभ-सद्गुण बर्जन ॥ क्लिष्टसत्व इहया ओ मरण कालेते । संबरेर आराधना करेना भ्रमते ॥ ४१ मेधावी तपस्या करे त्यजे स्निग्ध रस । मदिरा - प्रमाद - शून्य साधु अनलस || आमि हई सुतापस एईरूप भावि । कदापि उत्कर्ष बोध करेना मेधावी ॥ ४२ याहा इय, ज्ञानशालि - साधुरपुजित । करम निर्जरारूप, तत्व - समन्वित ॥ मोक्षरे कारक, सेई, गुणेर आधार । संयम, कीर्त्तिव, आमि अति शुद्धाचार ॥ धार्मिक, सुजन प्राज्ञ, यति तपोधन । आमाहते उहा एवे करुन श्रवण ॥४३. धरि गुण अप्रमादि, साधु महाजन । करेन मरण-काले दुर्गुण : वर्जन ॥