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दशबैकालिकसूत्रपात.
जए अनिगम चउरो समाहिङ, सुविसुञो सुससमाहिअप्पउँ ॥
विनलहिवे सुहावहं पुणो, कुवइ अ सोपयखेममप्पणो ॥६॥ जाइमरणा मुच्चइ, इत्यंभं च चएइ सघसो ॥ सिधे वा हवा सासणे, देवे वा अप्परए महहिए॥त्तिवेमि॥
॥ चजत्यो उद्देसो सम्मत्तो ॥४॥ ॥विणयसमाहीणासन्नयणं सम्मत्तं ॥ ए॥
॥ अथ दशमं सभिवध्ययनं भारभ्भते ॥ निरकम्म माणा अ बुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिजे हविजा ॥ इत्थीण वसं न आवि गडे, वंतं नो पमिआय जे स लिस्कू ॥१॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीउदगं न पिए न पियावए। अगणि सत्यं जहा सुनिसिठी, तं न जले न जलावए जे स निरकू ॥२॥ अनिलेण न वीए वीयावए, हरियाणि न विंदे न बिंदावए ॥ बीआणि सया विवजयंतो, सच्चित्तं नाहारए जे सन्निरकू ॥३॥ वहणं तसथावराण होइ, पुढवीतणकनिस्सियाणं ॥ तम्हा उद्देसि न लुजे, नो वि पंए न पयावए जे स निरकू ॥४॥ रोश्य नायपुत्तवयणे, अत्तसमे मनिज प्पि काए । पयं च फासे महत्वयाई, पंचासवसंवरे जे स निरकू ॥ ५॥ अत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी हविज बुद्धवयणे ॥ अहणे निजायरुपवरयए, गिहिजोगं परिवजाए जे स निरकू ॥६॥ सम्मद्दिकी सया अमूढे, अहि हु नाणे तवे संजमे थ॥ . तवसा धुण पुराणपावगं, मणवयकायसुसंवुडे जे स जिरकू ॥ ७ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, निविहं खाइमं सामं लजित्ता ॥ होही असो सुए परे वा, तं न निहे न निहावए जे स निरकू ॥ ७ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाश्मसाइमं लन्नित्ता ॥ बंदिश साहम्मिश्राण मुंजे, चुच्चा सनायरए जे स निरकू ॥ ए॥ न य बुग्गहिरं कहं कहिङ्गा, न य कुप्पे निदिए पसंते ॥ संजमधुवजोगजुत्ते, जवसंते उवहेडए जे स निरकू ॥ १० ॥ जो सह हु गामकंटए, अक्षोसपहारताणा या॥ नयरवसद्दसप्पहासे, समसुहरकसहे अ जे स निरकृ ॥११॥ पडिम पमिवजिया मसाणे, नो जायए लबजेरवाई दियस्स ॥ विविहगुणतवोरए य निच्चं, न सरीरं यानिकंखए जे स निरक ॥ १२ ॥ असई वोसच्चत्तदेहे, अकठे व हए लूसिए वा ।। पुढविसमे मुणी हविजा, अनियाणे अकोल्हढे जे स निरक ॥ १३ ॥ अभिजूला कारण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाज अप्पयं ।। विश्त्तु जाइमरणं महनयं, तवे रए सामणिए जे त निरक ॥ १४॥ हत्यसंजए पायसंजए, वायसंजए संजदिए । अलप्परए सुसमाहियप्पा, सुत्तत्यं च वियाण जे स निस्कृ ॥ १५ ॥