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दशवकालिकसूत्रपाठः
७१३ बहुबाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा ॥ बहुवित्थमोदगावि, एवं नासिज पन्नवं ॥ ३५॥ तहेव सावऊं जोगं, परस्सा अनिशिं॥ कीरमाणं ति वा नच्चा, सावजं न लवे मुणी ॥४०॥ सुकमित्ति सुपक्कित्ति, सुचिन्ने सुहडे मडे ॥ सुनिछिए सुलहित्ति, सावऊ वजए मुणी ॥ १॥
पयत्तपक्क तिं व पक्कमालवे, पयत्तचिन्न त्ति व छिन्नमालवे ॥
पयत्तलहित्ति व कम्महेन, पहारगाढ त्ति व गाढमालवे ॥४२॥ सबुक्कसं परग्धं वा, अजलं नस्थि एरिसं ॥ अविक्किमवत्तवं, अविअत्तं एव नो वए ॥ ३ ॥ सबमेअं वश्स्सामि, सबमेअंति नो वए ॥ अणुवी सबं सवत्य, एवं नासिक पन्नवं ॥४॥ सुक्की वा सुविक्की, अकिङ किकमेव वा ॥ इमं गिएह इमं मुंच, पणीनं नो विआगरे ॥ ४५ ॥ अप्पग्घे वा महग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा ॥ पणिअछे समुप्पन्ने, अणावजं विआगरे ॥ ४६॥ . तहेवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा ॥ सयं चि वयाहि त्ति, नेवं जासिज पन्नवं ॥४॥ बहवे श्मे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो ॥ न लवे असाहु साहु त्ति, साहुँ साहु त्ति आलवे ॥४॥ नाणदसणसंपन्नं, संजमे अ तवे रयं ॥ एवं गुणसमाउत्तं, संजय साहुमालवे ॥ ए॥ देवाणं मणुाणं च, तिरियाणं च वुग्गहे ॥ अमुगाणं जर्ड होज, मा वा होउ त्ति नो वए ॥ ५० ॥ वा वुठं च सीचन्हं, खेमं धायं सिवं ति वा ॥ कया णु हुज एआणि, मा वा होउ ति नो बए ॥५१॥
तहेव मेहं व नहं व माणवं, न देवदेव त्ति गिरं वा ॥
समुचिए उन्नए वा पर्जए, वजा वा वुझ वलाहय त्ति ॥ ५५ ॥ अंतलिरक त्ति एं वूछा, गुलाणुचरित्र त्ति अ॥ रिधिमंतं नरं दिस्स, रिधिमंत ति बालवे ॥ ५३ ॥
तहेव सावळाणुमोअणी गिरा, उहारिणी जा य परोवधाइणी । से कोह लोह लय हास माणवो, न हासमाणो वि गिरं वजा ॥ ५४॥ सुवक्कसुधिं समुपेहि, मुणी गिरं च मुळं परिवऊए सया ॥ मिश्र अमुळे अणुवीइ नासए, सयाणवळे लहइ पसंसणं ॥ ५५ ॥ . नासा दोसे अ गुणे अ जाणिया, तीसे आ चुके परिवऊए सया ॥ बसु संजए सामणिए सया जए, वइज बुधे हिअमाणुलोमियं ॥५६॥ परिरकलासी सुसमाहिइदिए, चउकसायावगए अणिस्सिए ॥ स निझुणे धुन्नमलं पुरेकडं, आराहए लोगनिणं तहा परं ॥ त्तिवेमि ॥ ५७ ॥
॥ इति सुवक्कसुधीअनयणं सम्मत्तं ॥७॥
॥ अथाचार प्रणिधिनामकमष्टममध्ययनं प्रारभ्यते ॥ आयारप्पणिहिं लड़ें, जहा कायब निरकुणा ॥ तं ने उदाहरिस्सामि, आणुपुधिं सुणेह मे ॥१॥ पुढवीदगअगणिमारुस, तणरूरकस्स वीयगा ॥ तस्सा अ पाणा जीव त्ति, वुत्तं महेसिणा ॥२॥ तेसिं अत्थागजोएण. निच्चं होरवयं सिया ॥ मणसा कायवक्कएं, एवं हवा संजए ॥३॥ पुढवि नित्तिं सिलं लेलु, नेव निंदे न संलिहे ॥ तिविहेण करणजोएण, संजएसुसमाहिए ॥४॥ सुधपुढवीं न निसीए, ससरकंमि अ आसणे ॥ पमजित्तु निसीइजा, जाइत्ता जस्स नग्गरं ॥ ५॥ सीउँदगं न सेविजा, सिलावु हिमाणि अ॥ उसिणोदगं तत्तफासुग्रं, पमिगाहिक संजए ॥६॥ उदउझं अप्पणो कार्य, नेव पुंठे न संलिहे ॥ समुप्पेहं तहानूरं, नो णं संघट्टए मुणी ॥७॥ शंगालं अगणिं अचिं, अलायं वा स जोश्यं ॥ न जिज्ञा न घट्टिजा, नो णं निवावए मुणी ॥ ७॥ तालिअंटेण पत्तेण, साहाए विडणेण वा ॥ न वीज अप्पणो कायं, बाहिरं वा वि पुग्गलं ॥ ए॥