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सुखपूर्वक निर्मल होता है । हे गौतम! इसी तर नेरीयों के कर्म गाढ़े, चिकने रिजष्ट खिलीभूत ( निकाचित ) किये हुए हैं जिससे महावेदना वेदते हैं तो भी श्रमण निर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा नहीं कर सकते हैं । हे गौतम! जैसे खंजन से रंगा हुआ वस्त्र सुखपूर्वक धोया जाता है, इसी तरह भ्रमण निर्ग्रन्थों के कर्म तप संयम ध्यानादि से पतले शिथिल निर्वल
सार किये हुए हैं जिससे अल्प वेदना वेदते हैं तो भी महानिर्जरा करते हैं । जैसे सूखे हुए घास में अग्नि डालने से घास तुरन्त भस्म हो जाता है । तथा गर्म धगधगते लोह के गोले पर जल की बूंद डालने से वह बूंद तुरन्त भस्म हो जाती है इसी तरह भ्रमण निर्ग्रन्थ महा निर्जरा करते हैं ।
हो भगवान् ! जीव महावेदना महानिर्जरा किससे करता ! हे गौतम! करण से करता है । अहो भगवान् ! करण कितने प्रकार का है ? हे गौतम ! करण चार प्रकार का है१ मन करण, २ वचन करण, ३ काया करण, ४ कर्म करण । नारकी में करण पावे ४ अशुभ, अशुभकरण से असातावेदना वेदते हैं, कदाचित् साता वेदना भी वेदते हैं । देवता में करण पावे ४ शुभ, शुभ करण से साता वेदना वेदते हैं, कदाचित् साता वेदना भी वेदते हैं । पाँच स्थावर में करण पावे २
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* कर्म करण - कर्मों के बन्धन संक्रमण आदि में निमित्त भूत . जीव का वीर्य कर्मकरण कहलाता है ।"