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हैं कि सनत्कुमारेन्द्रजी ( तीसरे देव लोक के इन्द्र ) आवें तो अच्छा हो । तत्र सनत्कुमारेन्द्रजी का आसन चलायमान होता है । वे आकर दोनों इन्द्रों को समझा देते हैं, उनका विवाद मिटा देते हैं । सनत्कुमारेन्द्रजी साधु साध्वी श्रावक श्राविका इन चार तीर्थ के बड़े हितकारी सुखकारी पथ्यकारी अनुकम्पक (अनुकम्पा करने वाले ) हैं। निःश्रेयस (कल्याण) चाहने वाले, हित सुख पथ्य चाहने वाले हैं । इसलिये वे भवी, समदृष्टि, सुलभबोधी, परित्तसंसारी, श्राराधक, चरम हैं । सनत्कुमारेन्द्रजी की स्थिति ७ सागरोपम की हैं। वहाँ से ( देवलोक से ) चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त होवेंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे। . सेवं भंते ! . सेवं भंते !! ...
(थोकड़ा नं० ३४) ... श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे शतक के दूसरे उद्देशे में चमरेन्द्रजी के उत्पात' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
१-अहो भगवान् ! क्या असुरकुमार देव पहली रत्नप्रभा नरक के नीचे बसते हैं ( रहते हैं ) ? हे गौतम ! णो इणद्वे
* पूर्व भव में ये चार तीर्थ ( साधु साध्वी श्रावक श्राविका )