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च्छिम । अण्डज और पोतजके ३-३ भेद हैं- स्त्री, पुरुष, नपुंसक | सम्मूच्छिम जीव सब नपुंसक होते हैं। इनमें लेश्या पावे ६, दृष्टि पावे ३, तीन ज्ञान, तीन ज्ञान की भजना | जोग पावे ३, उपयोग पावे २ ( साकारोपयोग, अनाकारोपयोग ) । असंख्याता वर्ष की आयुष्य वाले युगलिया मनुष्य और तिर्यंचों को छोड़ कर शेष यावत् आठवें देवलोक तक के जीव आकर खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होते हैं । इन की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। इनमें समुद्घात पावे ५ ( पहले की ) । ये समोहया असमोहया दोनों मरण से मरते हैं । पहली से तीसरी नरक तक भवनपति से लेकर आठवें देवलोक तक और मनुष्य तिर्यंच में सब ठिकाने जाकर उत्पन्न होते हैं । खेचर की १२ लाख कुल कोड़ी है !
-- जिस तरह खेचर का अधिकार कहा उसी तरह जलचर, स्थलचर, उरपुर और भुजपर का अधिकार भी कह देना चाहिये । नवरं ( इतना विशेष ) जलचर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट कोड पूर्व की कुल कोड़ी १२५०००० साढ़े बारह लाख है । पहली से सातवीं नरक तक जाते हैं । स्थलचर में यौनि पावे. २ ( पोतज और सम्मूच्छिम ) स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट ३ पल्योपम की, कुलकोडी दस लाख है। चौथी नरक तक
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सम्मूच्छिम— देव नारकी के सिवाय जो जीव माता पिता के सँयोग के बिना उत्पन्न होते हैं वे सम्मूच्छिम कहलाते हैं, जैसे—कीडी कुथु, पतंगा आदि ।