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८-अन्यतीर्थिक की क्रिया आसरी प्रश्न चलता. है सो कहते हैं... १-अहो भगवान् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं कि एक जीव एक समय में सम्यक्त्व की और मिथ्यात्व की दो क्रिया करता है । क्या उनका यह कहना ठीक है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थिकों का यह कहना मिथ्या है। एक जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है, दो क्रिया नहीं कर सकता. *। ..... . .... सेवं भंते ! . . . . सेवं भंते !! :..... ...... (थोकड़ा नं०६२.) : ......:
श्री भगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के पांचवें उद्दशे में 'खेचर तिर्यश्च पंचेन्द्रिय की योनि संग्रह' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं।
जोणी संग्गह लेस्सा, दिट्ठी णाणे य जोग उवोगे। __उववाय ठिइसमुग्धाय, चवण जाई कुल विहीरो ।।
१-अहो भगवान् ! खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की कितने प्रकार की योनि है ? हे गौतम तीन प्रकार की है-+अण्डज, पोतज;सम्मू. * यह सारा थोकड़ा जीवाभिगम सूत्र के तिर्यंच के दूसरे उद्देशे में है ( आगमोदय समिति पृष्ठ. १३८ से १४२ तकः).। .. ... . . . . . . . :
. + अण्डज-अण्डे से उत्पन्न होने वाले जीव अण्डज कहलाते. हैं जैसे-कबूतर,मोर आदि ।.... .. पोतज-जो जीव जन्म के समय चर्म से आवृत्त होकर कोथली तिउत्पन्न होते हैं वे पोतज कहलाते हैं, जैसे-हाथी चिमगादड़ आदि ।
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