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२५० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
प्रवर्तक कहे जा सकते हैं। यह ऐतिहासिक कार्य करने का सुन्दर अवसर उन्हें 'सरस्वती' का सम्पादन होने के नाते ही प्राप्त हुआ। अतएव, 'सरस्वती' के सम्पादक के रूप में उनकी साहित्यिक उपलब्धियाँ सबसे अधिक प्रकट हुई हैं, इसमें सन्देह नहीं।
हिन्दी-गद्य की भाषा को परिष्कृत करने के साथ-ही-साथ द्विवेदीजी ने गद्यशैली को भी परिनिष्ठित रूप प्रदान किया। अपने समय तक की गद्यशैलियों को भाषासंस्कार, विषय-निरूपण एव भाव-प्रकाशन की दृष्टि से उन्होंने एक नया ही विधान दिया। उनकी गद्यशैली को किसी रचना-विशेष अथवा विषय-विशेष से सम्बद्ध नहीं किया जा सकता है। द्विवेदीजी ने विषय के अनुसार शैलियाँ अपनाई हैं। इसी कारण उनकी गद्यशैली में अनेकरूपता है, फिर भी भाव-प्रकाशन की दृष्टि से उनकी गद्यशैली को प्रमुखतः तीन विभागों-आलोचनात्मक, परिचयात्मक
और व्यंग्यात्मक-में विभक्त किया जा सकता है। इनमें भी परिचयात्मक अथवा विवेचनात्मक (विवरणात्मक) कोटि की गद्यशैली उनकी प्रतिनिधि गद्यशैली है।। अपने सभी निबन्धों एवं समीक्षाओं में उन्होंने मुख्यतया यही शैली अपनाई है । जिस प्रकार अध्यापक अपने छात्रों को एक ही बात बार-बार सरल रीति से समझाता है,. उसी प्रकार द्विवेदीजी ने भी इस परिचयात्मक गद्यशैली में विषय-विवेचन किया है । शैली की ही भाँति गद्य-रचनाओं में द्विवेदीजी की भाषा भी सरल एव प्रवाहमयी है। उनकी भाषा को समझने के लिए शब्दकोश की आवश्यकता नहीं महसूस होती। भाषाशैली के अनुसार ही कहीं प्रखर, कहीं प्रवाहमयी और कहीं चुटीली बनकर सामने आई है। भाषाशैली की सरलता एवं विवेचनगत स्पष्टता के उदाहरणरूप हम द्विवेदीजी के निबन्धों की चर्चा कर सकते हैं। उनके निबन्धों में विविध विषयों का सरल स्पष्ट शैली में जितना मनोहारी विवेचन हुआ है, वह प्रशंसनीय है। द्विवेदीजी . का निबन्ध-साहित्य इतिहास, विज्ञान, अर्थशास्त्र, गृहविज्ञान, जीवनी आदि विविध उपयोगी विषयों से भरा हुआ है। 'सरस्वती' में प्रकाशित उनके इन निबन्धों का
परवर्ती काल में पुस्तकाकार प्रकाशन भी हुआ। परन्तु, निबन्ध-विधा के लिए अपेक्षित । गुणों का इन निबन्धों में हम अधिकांशतः अभाव पाते हैं। विषय, आकार एवं प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से द्विवेदीजी के निबन्ध साहित्य की सीमा में रखी जानेवाली अधिकांश रचनाएँ टिप्पणी की कोटि की हैं। 'सरस्वती' के सफल सम्पादक होने के कारण द्विवेदीजी विविध विषयों पर सूचनात्मक टिप्पणियाँ तो लिख सके, लेकिन उन टिप्पणियों में निबन्धोचित व्यक्तिपरकता एवं प्रवाहसम्पन्नता नहीं ला सके । इस कारण, वे सफल निबन्धकार नहीं कहे जा सकते हैं और न उनके तथाकथित निबन्धों को शीर्ष कोटि का निबन्ध ही कहा जा सकता है। कई विद्वानों ने इस आशय के