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________________ '२४८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यवितत्व एवं कर्तृत्व की तुलना में ओछे प्रतीत होगे। यह सत्य कई विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से स्वीकार किया है। परन्तु, रचनात्मक साहित्य की अपेक्षा उनका रचनात्मक कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक गरिमा से सम्पन्न है। निज साहित्य-सर्जन द्वारा द्विवेदीजी भले ही साहित्य की राशि मे गौरवपूर्ण बृद्धि नहीं कर सके, परन्तु समसामयिक लेखकों को साहित्यिक अभावों की पूर्ति की दिशा में उन्मुख करने, हिन्दी-भाषा एवं साहित्य का संस्कार करने एवं हिन्दी-जगत् को अभिनव विषयों की ओर मोड़ने में उनकी बुद्धि एवं प्रतिभा का लोहा हिन्दी-माहित्य सदैव मानता रहेगा। आचार्य द्विवेदीजी गाडिवित्र नाका प्रमुख आधार उनकी सम्पादन-कला थी और इसी कारण 'सरस्वती' को उनकी कीत्ति की पताका कहा जा सकता है। हिन्दी-संसार को नये लेखकों-विषयों से परिचित कराने एवं भाषा-साहित्य को परिष्कृत करने का युगान्तरकारी कार्य उन्होने 'सरस्वती' के माध्यम से ही किया। मन् १९०३ ई० मे जिस समय उन्होंने इस पत्रिका का सम्पादकत्व ग्रहण किया, उस समय तक हिन्दी में सम्पादन-कला का कोई आदर्श स्थापित नहीं हुआ था। पत्रिकाओं में उपयोगी विषय, समय की पाबन्दी, भाषा, लेखकों की ख्याति इत्यादि पर ध्यान नहीं दिया जाता था। इस कारण, अधिकांश हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं की अकालमृत्यु हो जाया करती थी। 'सरस्वती' का सम्पादन अपने हाथ में लेते ही द्विवेदीजी ने हिन्दी में नये-नये उपयोगी विषयों को प्रस्तुत करना शुरू किया और पत्रिका का कलेवर विविधविषयमण्डित बना दिया। नवीन विषयों पर लेखनी चलाने के लिए लेखकों की भी कमी थी। द्विवेदीजी ने देश-विदेश के हिन्दीभाषी विद्वानों को लिखने के लिए प्रेरित १. (क) "मौलिक रचना की दृष्टि से उनकी सेवा-साधना का महत्त्व उतना नहीं है, जितना साहित्य की अनेकमुखी सामग्री एकत्र करने में।" -डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु' : हिन्दी-साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग १३, पृ० २० । (ख) "उनकी मौलिक रचनाओं का महत्त्व अधिक नहीं है, परन्तु वे एक महान् शक्ति के प्रतीक थे, जिन्होंने हिन्दी-साहित्य को बल प्रदान किया और इस दृष्टि से उनका महत्त्व बहुत अधिक है।"-डॉ० श्रीकृष्ण लाल : 'आधुनिक हिन्दी-साहित्य का विकास', पृ० ३१ । (ग) “यह बात निर्विवाद है कि उस युग की साहित्यिक साधनाओं की अग्रगति को दृष्टि में रखकर विचार करने पर द्विवेदीजी की वक्तव्य-वस्तु प्रथम श्रेणी की नहीं ठहरती। उसमें नवीन और प्राचीन, प्राच्य और पाश्चात्त्य, साहित्य और विज्ञान-सब कुछ है, पर सभी सेकेण्ड हैण्ड और अनुसंकलित ।" -डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी : विचार और वितर्क, पृ० ७९ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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