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कविता एवं इतर साहित्य [ २२९ की विविध-विषयात्मक कविताओं में 'गानविद्या', 'श्रीहार्नली-पंचक'२ 'विचार करने योग्य बातें'3, 'शहर और गांव', 'शरीर-रक्षा'५, 'भवन-निर्माण-कौशल'
आदि की चर्चा की जा सकती है। स्पष्ट ही, इनमें विषय का अद्भुत वैविध्य मिलता है। 'एक ओर शरीर-रक्षा के उपायों पर कविता लिखी गई है, तो दूसरी ओर शहर और गाँव का वार्तालापमय तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है; एक ओर गानविद्या को कविता का विषय बनाया गया है, तो दूसरी ओर भवन-निर्माण-कला पर कविता लिखी गई है। इस प्रकार, द्विवेदीजी की कविताई के विविध विषयों पर आश्रित आयाम दृष्टिगत होते हैं। 'सरस्वती' के पन्नों को भरने के लिए उन्हे कविता को विविध स्तरों पर लिखना पड़ा। इसी कारण, उनकी काव्य-कला कोई निश्चित रूप नही धारण कर सकी और कई विषयों में उलझकर रह गई।
विधान की दष्टि से द्विवेदीजी की काव्य-रचनाओं के चार रूप सामने आये हैं : प्रबन्ध, मुक्तक, गीत और गद्यकाव्य । प्रबन्ध-रचना की मूल आत्मा को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से द्विवेदीजी ने किसी महाकाव्य अथवा खण्डकाव्य की रचना नहीं की थी। उनकी कई लम्बी कविताओं मे प्रबन्ध के अनुकूल वातावरण मिलता है, कथात्मकता का निर्वाह मिलता है और पद्य-प्रबन्ध के सभी गुण मिलते है। उनकी ऐसी कथात्मक 'प्रबन्ध-कविताओं में हम 'सुतपंचाशिका', 'द्रौपदीवचन-वाणावली', 'जम्बुकी-न्याय', 'टेसू
की टाँग' आदि की गणना कर सकते हैं। साथ ही, द्विवेदीजी की कई कविताओं में प्रबन्ध 'एवं मुक्तक के गुण एक साथ मिलते हैं। इस कोटि की रचनाओं का रूप-विधान मुख्यतया वस्तुवर्णनात्मक है। इनके विषय में डॉ. उदयभानु सिंह ने लिखा है : ___ "वस्तुवर्णनात्मक पद्यप्रबन्धों में बिना किसी कथानक के किसी वस्तु या विचार का प्रबन्धकाव्य की भांति कुछ दूर तक निर्वाह किया गया है और फिर कविता समाप्त हो
___इस श्रेणी की कविताओं को प्रबन्धमुक्त की संज्ञा भी दी जा सकती है। द्विवेदीजी की 'कुमुदसुन्दरी', 'भारत दुर्भिक्ष', 'समाचारपत्र-सम्पादकस्तवः', 'गर्दभकाव्य' जैसी रचनाएँ इसी कोटि की हैं। शुद्ध रूप से मुक्तक कही जानेवाली कई
१. 'सरस्वती', सितम्बर, १९०३ ई०, पृ० ३०७-३०८ । २. 'सरस्वती', अक्टूबर, १९०३ ई०, पृ० ३४६ । ३. 'सरस्वती', फरवरी, १९०४ ई०, पृ०४६-४७ । ४. 'सरस्वती', अप्रैल, १९०६ ई., १५४-१५६ । ५. 'सरस्वती', मई, १९.६ ई., पृ० १७४। ६. 'सरस्वती', जुलाई, १९०९ ई०, पृ. ३१६-३२४ । ७. डॉ. उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', 1.1.५।