SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १७९ ५. इसी सत्य के द्वारा वह अपरिचित अनजाने पदार्थों अथवा दृश्यों का ऐसा मनोहर चित्र खीचे कि पाठक अथवा श्रोता एकाग्नचित्त हो जाय और चित्रित विषय पर प्रेमपूर्वक विचार करे। ६. कवि अपने अवलोकन और अपनी कल्पना से ऐसी शिक्षा देता है कि वह न तो आशा का रूप धारण करती है और न अपना स्वाभाविक रूखापन प्रकट करती है, किन्तु मीनर-ही-भीतर मन को उकसा देती है।' ७. मनोहर वर्णन और शिक्षा के साथ-साथ कवि अपने शब्द और वाक्य भी ऐसे मनोहर बनाता है कि पढ़नेवाले के आनन्द की सीमा नहीं रहती।२ जहाँ कवि में इन गुणो का होना अनिवार्य है, वहाँ द्विवेदीजी के अनुसार पाठकों में भी सहृदयता जैसे गुणों का होना अपेक्षित है । यदि पाठक सजग एवं सहृदय नहीं है, तो कविता चाहे कितनी भी उत्कृष्ट क्यों न हो, रसोद्रेक नही कर सकती। सहृदय एवं संवेदनशील पाठक ही कवि द्वारा संचारित रस में अवगाहन करने में समर्थ होता है, उसकी ही हत्तन्त्री झंकृत हो सकती है। इसी प्रकार, कवि में भी सहृदयता की अपेक्षा होती है-ऐसी सहृदयता की, जो कवि के स्वर में अपूर्व माधुर्य एवं संगीत संचारित कर दे। इस सहृदयता के अभाव में कवि कवि नहीं रह जाता और न पाठक पाठक ही । हिन्दी की छायावादी और अंगरेजी की रोमाण्टिक कवियों की सहृदयता ख्यात है, पर हिन्दी के सन्त कवियो में भी इस गुण की प्रचुरता मिलती है । सहृदयता के लिए आवश्यक नहीं कि कवि के हृदय में स्थूल जगत् के प्रति, पार्थिव वस्तुओं के प्रति ही अगाध प्रेम हो । प्रेम यदि सूक्ष्म हो और भक्ति का रूप धारण कर ले, तब भी वह हृदय को उतना ही कोमल और कमनीय बना देता है, जितना पार्थिव प्रेम। द्विवेदीजी ने जिन पाँच शर्तों के उल्लेख के अनन्तर 'कवि-कर्तव्य' शीर्षक निबन्ध का अन्त किया है, वे है : १. कविता में साधारण लोगों की अवस्था, विचार और मनोविकारों का वर्णन हो। २. उसमें धीरज, साहस, प्रेम और दया आदि गुणों के उदाहरण रहें। ३. कल्पना सूक्ष्म और उपमादिक अलंकार गूढ़ न हो। ४. छन्द सीधा, परिचित, सुहावना और वर्णन के अनुकूल हो। इस शर्तों के सूक्ष्म विश्लेषण से जो कतिपय तथ्य प्रकट होते हैं, उनका लगे हाथों विचार कर लेना वांछनीय प्रतीत होता है। द्विवेजी के अनुसार कविता कुलीन और अभिजात लोगों से सम्बद्ध न होकर साधारण लोगों की अवस्था, विचार और मनो १. रसज्ञरंजन, पृ० २८ । २. उपरिवत्, पृ० २६ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy