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________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १४७ संग्रहो में इसी कोटि के निबन्ध संकलित हैं। 'रानी दुर्गावती', 'श्रीगुरु हरिकृष्ण जी २ 'सुखदेवमिश्र',3 'हर्बर्ट सेंसर', 'बौद्धाचार्य शीलभद्र'५ और 'राजा सर टी. माधवराव'६ जैसे निबन्ध जीवन चरितात्मक ही है। अपने पाठकों के समक्ष आदर्श चरित्रों की उपस्थापना करने के उद्देश्य से द्विवेदीजी ने इस कोटि के निबन्धों की रचना की थी। इन जीवनचरितात्मक निबन्धो की सरलता एवं स्पष्टता भी दर्शनीय है: "श्रीयुत विनायक कोण्डदेव ओक मराठी के नामी लेखक थे। उनका जन्म एक गरीब के घर हुआ । लडकपन में ही माता-पिता मर गये। अपनी मातृभाषा मराठी और बहुत थोडी अँगरेजी पढकर वे ८) मासिक वेतन पर एक देहाती मदरसे के मुदरिस नियत हुए । कुछ समय बाद उनकी बदनी बम्बई को हुई । वहाँ भी वे मुर्दारसी ही पर आये, पर समय-समय पर आपकी तरकी अवश्य होती रही।"७ स्पष्ट है कि 'द्विवेदी जी ने अपने वस्तुवर्णनात्मक, कयात्मक, आत्मकथात्मक, चरितात्मक आदि सभी कोटियो के निबन्धों में विवरणात्मक या परिचयात्मक निबन्धों के उपयुक्त सरल एवं स्पष्ट भाषाशैली का ही उपयोग किया है। इनकी शैती के सम्बन्ध में बाबू गुलाब राय ने लिखा है : "परिचयात्मक निबन्ध पाठकों को विविध विषयों और विशेषकर प्राचीन साहित्य एवं इतिहास की जानकारी कराने के उद्देश्य से लिखे गये है। इससे ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ पाठकों का मनोरंजन भी होता है। इन निबन्धों की शैली अध्यापकों या उपदेशकों की जनी व्यासशैनी है, जिसमे एक ही बात विभिन्न रग-रूप में कई बार कही गई है।८ परिचयात्मक अथवा वर्णनात्मक निबन्धों में शैनीगत एक विशिष्ट प्रवाह परिलक्षित होता है। छोटे-छोटे वाक्यों में बँधी हुई, प्रचलित शब्दावली से गठिन एव प्रभावित करनेवानी शैली में लिखित इन निबन्धों का उद्देश्य ज्ञानवर्द्धन, प्रचार एवं मनारंजन था। अतएव, जनसाधारण से सम्बन्ध रखनेवाले इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इतकी शैनी को सरल बनाये रखने की दिशा में द्विवेदीजी सतत १. 'सरस्वती', जून, १९०३ ई०, पृ० २१५ २१८ । २ 'सरस्वती', जून, १९०४ ई., पृ० १८१-१८२ । ३. 'सरस्वती , अक्टूबर, १९०४ ई०, पृ० ३२७-३३७ । ४. 'सरस्वती', जुलाई, १९०६ ई०, पृ० २५५--२६२ । ५. 'सरस्वती', अप्रल, १९०८ ई०, पृ. १७४ - १७६ । ६. 'सरस्वती', अगस्त, १९०९ ई०, पृ० ३३२-३३७ । ७. आचार्य महावीप्रसाद द्विवेदी : 'विवार-विमर्श', पृ० २७३ । ८. श्रीगुलाब राय : हिन्दी-गद्य का विकास और प्रमुख शैनी कार', पृ० १०२
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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