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१३२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व ___ "निबन्ध सरल शैली में अभिव्यक्त किया हुआ लेखक का निजी दृष्टिकोण है, जिसमें आकारलघुता के साथ-साथ गद्य की कलात्मकता के दर्शन होते है ।"१ ___ श्रीजयनाथ नलिन ने भी स्वीकार किया है : “निबन्ध स्वाधीन चिन्तन और निश्छल अनुभूतियों का सरस, सजीव और मर्यादित गद्यात्मक प्रकाशन है।"रे हिन्दी-साहित्य मे निबन्ध-लेखन का सूत्रपात भारतेन्दु-युग मे हुआ। स्वयं भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र, पं० बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, जगमोहन सिंह, अम्बिकादत्त व्यास, बालमुकुन्द गुप्त प्रभृति ने निबन्ध-लेखन की दिशा में प्रशंसनीय समर्थ उपलब्धियों को सामने रखा। भारतेन्दु की निबन्ध-कला किसी विशेष नीति से सीमित नहीं थी। इसलिए, विषय एवं शैली की दृष्टि से भी उनके निबन्धों की कोई सीमारेखा नही है। उन्होंने ऐतिहासिक, गवेपणात्मक, चारित्रिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, यात्रा-सम्बन्धी, हास्यव्यग्यात्मक, आत्मकथात्मक आदि सभी प्रकार के निबन्ध लिखे । उनके सम-सामयिक अन्य निबन्धकारों की भी यही प्रवृत्ति रही। भारतेन्दु-युग के निबन्धो मे व्याप्त जिन्दादिली एवं सजीवता ही उस युग की सर्वप्रमुख विशेषता थी। अन्यथा, हिन्दी के आधुनिक काल के इस प्रथम चरण में निबन्धकारों का क्षेत्र-विस्तार नहीं हो पाया था एवं भाषाशैली-सम्बन्धी न्यूनताएँ तो थी ही। श्रीजनार्दनस्वरूप अग्रवाल ने ठीक ही लिखा है :
"इन लेखकों के समय में हिन्दी-गद्य प्राय: अपनी शैशवावस्था में ही था । अतः, जो कुछ भी इन्होंने उल्टा-सीधा लिखा, वही बहुत है-उसी से गद्य-साहित्य की, निबन्धसाहित्य की नहीं, श्रीवृद्धि तथा उन्नति हुई। .... हॉ, इन लोगों की कृतियो से हिन्दीगद्य का मार्ग अवश्य प्रशस्त हो गया और आगे बननेवाले निवन्ध-प्रासाद के लिए क्षेत्र प्रस्तुत होकर उसकी नींव रखने का भी समुचित आयोजन हो गया।"3
हिन्दी मे सही अर्थों में जीवन के प्रत्येक पक्ष को उद्घाटित करनेवाले निबन्ध-साहित्य का श्रीगणेश बीसवीं शताब्दी में 'सरस्वती' के प्रकाशन के साथ हुआ। इस बात को कई लेखकों ने स्वीकार किया है। जैसे, श्री के० बी० जिन्दल ने लिखा है : 'Saraswati heralded the birth of the essey in Hindi Literature'
डॉ० श्रीकृष्णलाल ने भी इसी बात को स्वीकार किया है : "निबन्धों के विकास का प्रथम काल 'सरस्वती' मासिक पत्रिका के प्रकाशन से प्रारम्भ होता है, जब हिन्दी१. डॉ० कन्हैयालाल सहल : 'निबन्ध का स्वरूप-लक्षण', 'साहित्य-सन्देश',
निबन्ध-अंक, अगस्त, १९६७ ई०, पृ० ४७। २. श्रीजयनाथ नलिन : 'हिन्दी-निबन्धकार', पृ० १०॥ ३. श्रीजनार्दनस्वरूप अग्रवाल : 'हिन्दी में निबन्ध-साहित्य', पृ० २६ । ४. K. B. Jindal : A History of Hindi Literature, p. 250 ।