________________
आदिनाथ-चरित्र ७२ ।
प्रथम पर्व सब सावध योगों की विरति के साथ साथ उस राजर्षि ने चार प्रकार के आहारों का भी प्रत्याख्यान किया और समाधि रूप अमृत के झरने में निरन्तर निमग्न होकर, कमलिनी कीतरहज़राभी.ग्लानि को प्राप्त नहीं हुआ। परन्तु वह महासत्व-शिरोमणि मानों खाने के पदार्थों को खाता और पीने के पदार्थों को पीता हो, इस तरह अक्षीण कान्तिवाला दीखने लगा; अर्थात् उसके भूखे-प्यासे रहने पर भी कुछ भी न खाने पीने पर भी, उस की कान्ति क्षीण
और मलीन न हुई । बाइस दिनों तक अनशन पालन कर-भूखाप्यासा रह, अन्त में पञ्च परमेष्टि नमस्कार को स्मरण करते हुए उसने अपना शरीर त्याग दिया।
Xxx पाचवा भव xxx
वहाँ से, सञ्चित किये पुण्य-बलसे, दिव्य घोड़े की तरह, वह तत्काल दुर्लभ ईशानकल्प यानी अन्य देवलोक में पहुंचा। वहाँ श्रीप्रभ नामके विमान में, वह उसी तरह उत्पन्न हुआ, जिस तरह मेघ के गर्भ में विद्यु तपुञ्ज उत्पन्न होता है। उसकी आकृति दिव्य थी। उसका शरीर सप्त धातुओं से रहित था। उसमें सिरसके फूल जैसी सुकुमारता थी और दिशाओं को आक्रान्त करने वाली कान्ति थी। उसकी देह वज्र के समान